अच्छा और बुरा क्या है ?
आइये ज़रा समझते है !
जो निर्णय या कार्य हमारे लिये अच्छा हो सकता है वह आपके लिये नहीं ऐसा क्यों ?
सब डायमेंशन की बात है इसे थोड़ा सूक्ष्म दृष्टि से समझिये.
शाश्वत सिद्धान्त के साथ मिलकर कैसे कोई कुछ से कुछ और समझता है देखिये
मानिये टेबल की एक तरफ़ गोकुल जी बैठे हैं उनके सामने हम दूसरी तरफ़ अखिलेश जी तीसरी तरफ़ राहुल जी
हमारे सामने गोकुल जी बैठे हैं लेकिन पूर्व दिशा भी उसी तरफ़ है इसलिये सामने गोकुल बैठे हैं लेकिन हम जानते हैं की वह पूर्व की तरफ़ हैं
गोकुल जी के सामने हम बैठे हैं लेकिन वह भी यह जानते हैं हम पश्चिम में हैं
दोनो आमने सामने होने पर भी दिशा के भेद को समझते हैं
राहुल जी के दाहिनी तरफ़ हम और बायीं तरफ़ गोकुल जी हैं
अखिलेश जी के दायीं तरफ़ गोकुल जी और बायीं तरफ़ हम हैं
उनके सामने राहुल जी हैं वह उत्तर में हैं
और इसी तरह राहुल जी के सामने होते हुये अखिलेश जी दक्षिण की तरफ़ हैं
यह तो केवल 4 दिशाओं के माध्यम से यह बताने का यत्न है की कैसे सामने होते हुये भी देखने के दृष्टिकोण से (Dimensions) सभी को सम्मुख या दायें – बायें बैठे हुये लोग अलग स्थान और दिशा में ज्ञात हो रहे हैं –
लेकिन दिशायें मुख्यत : 10 हैं
उर्ध्व, ईशान, पूर्व, आग्नेय, दक्षिण, नैऋत्य, पश्चिम, वायव्य, उत्तर और अधो
तो सामान्यत: 10 तरह से किसी के आचरण या व्यवहार अथवा उसके द्वारा लिया गया निर्णय या कार्य करने के कारण को हम सभी 10 आयामों से समझ सकते हैं
यह तो केवल साधारण तरीक़े से समझने के लिये आपको हमने बताया –
अब जैसा की आप जानते हैं समय को मुख्यत: 3 भागों में बताया जाता है –
भूतकाल, वर्तमान, एवं भविष्य काल
किन्तु समय (काल) के भी संस्कृतज्ञों ने सामान्यतः 10 भाग बतायें हैं
लट् लकार (Present Tense)
लोट् लकार (Imperative Mood)
लङ्ग् लकार (Past Tense)
लृट् लकार (Second Future Tense)
विधिलिङ्ग् लकार (Potential Mood)
आशीर्लिन्ग लकार (Benedictive Mood)
लिट् लकार (Past Perfect Tense)
लुट् लकार (First Future Tense or Periphrastic)
लृङ्ग् लकार (Conditional Mood)
लुङ्ग् लकार (Perfect Tense)
अब इतने काल खण्डों में किसी भी क्रिया या करने वाले को देखा, समझा या अनुमान सहित कल्पना की जा सकती है ।
10 दिशायें और 10 काल के भाग को मिलाने से आप यह समझेंगे जीवन में व्यक्ति जो कार्य करता है जैसा व्यवहार करता है जैसा निर्णय लेता है वह प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से 10 कारणों से बँधा होता है
जिसे केवल सूक्ष्म दृष्टि से देखा या समझा जा सकता है क्योंकि प्रारब्ध और पूर्व जनित कर्म से व्यक्ति सदा बँधा रहता है यहाँ तक की संस्कार का प्रभाव व्यक्ति के अगले जन्म में भी परिलक्षित होते हैं क्योंकि वह अत्यन्त सूक्ष्म होकर आत्मा से ही एकात्मता स्थापित कर लेते हैं, और मृत्यु के उपरान्त आत्मा दूसरे शरीर में प्रवेश के बाद भी उन संस्कारों से व्याप्त रहती है।
एक झटके में या किसी की मात्र कोई क्रिया या कार्य सुनकर उसे तत्क्षण मूर्ख या बुद्धिमान नहीं कहा जा सकता , जो ऐसा करते हैं वह सामान्य बुद्धि के होते हैं .
सभी आयामों को जोड़कर व्यक्ति के कार्य करने का कारण एवं स्थिति, परिस्थिति को समझकर सटीकता से सूक्ष्म अन्वेषण करके कृत – अकृत को सटीकता से समझा जा सकता है .
कैसे किसी का कोई कृत्य सही था सही है, ग़लत था या ग़लत है, सही दिखा लेकिन ग़लत था, ग़लत होते हुये भी सही समझा गया सही होते हुये भी तिरस्कृत एवं आपराधिक समझे गये अर्थात् सही को सही न समझ ग़लत समझा गया ,
क्रमश: