संस्कृत भाषा के लकार

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संस्कृत भाषा के दश लकार:
(10 types of _Lakaaras_ in Sanskrit)

संस्कृत व्याकरण में ‘लकार’ की अवधारणा क्रिया के काल और अवस्था को व्यक्त करने का एक महत्वपूर्ण तरीका है। ‘लकार’ शब्द ‘ल’ से शुरू होने वाले दस प्रत्ययों को संदर्भित करता है जो धातुओं (क्रिया मूल) में जोड़े जाते हैं। इन प्रत्ययों के द्वारा क्रिया के समय, प्रकार और मनोदशा का बोध होता है।

‘लकार’ का अर्थ:

संस्कृत में, क्रियाएँ अपने मूल रूप में ‘धातु’ कहलाती हैं। इन धातुओं में विभिन्न प्रत्यय जोड़कर क्रिया के अलग-अलग रूप बनाए जाते हैं। ‘लकार’ इन्हीं प्रत्ययों को कहते हैं। प्रत्येक लकार क्रिया के एक विशेष काल या अवस्था को दर्शाता है।

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What Will You Learn?

  • लकार की विस्तृत व्याख्या

Course Content

1- लट्_ वर्त्तमानकाल (present)
लट् लकार संस्कृत व्याकरण का एक अत्यंत महत्वपूर्ण लकार है जो वर्तमान काल की क्रियाओं को दर्शाता है। इसे समझना संस्कृत सीखने की शुरुआत के लिए आवश्यक है। यहाँ लट् लकार की विस्तृत व्याख्या दी गई है: परिभाषा: 'लट्' शब्द 'लट्' प्रत्यय से बना है जो धातुओं के साथ जुड़कर वर्तमान काल की क्रियाएँ बनाता है। 'वर्तमाने लट्' इस सूत्र के अनुसार, वर्तमान काल में क्रिया को दर्शाने के लिए लट् लकार का प्रयोग होता है। प्रयोग: लट् लकार का प्रयोग निम्नलिखित स्थितियों में होता है: वर्तमान काल की सामान्य क्रियाएँ: जो क्रियाएँ वर्तमान में हो रही हैं, उन्हें दर्शाने के लिए। जैसे: रामः पठति। (राम पढ़ता है।) बालिका नृत्यति। (लड़की नाचती है।) सूर्यः उदयति। (सूर्य उगता है।) नित्य या स्वाभाविक क्रियाएँ: जो क्रियाएँ हमेशा होती हैं या स्वाभाविक हैं। जैसे: जलम् वहति। (पानी बहता है।) वायुः वहति। (हवा बहती है।) निकट भविष्य की क्रियाएँ (कभी-कभी): कुछ मामलों में, जब भविष्य की क्रिया निश्चित और तत्काल हो, तो लट् लकार का प्रयोग हो सकता है। जैसे: अहम् श्वः गच्छामि। (मैं कल जा रहा हूँ।) (हालांकि यहाँ 'गमिष्यामि' का प्रयोग अधिक उचित है, लेकिन कभी-कभी लट् का प्रयोग भी होता है।) रूप रचना (Conjugation): लट् लकार में धातुओं के रूप पुरुष (Person) और वचन (Number) के अनुसार बदलते हैं। संस्कृत में तीन पुरुष होते हैं: प्रथम पुरुष (Third Person): वह/वे (He/She/It/They) मध्यम पुरुष (Second Person): तुम/आप (You) उत्तम पुरुष (First Person): मैं/हम (I/We) और तीन वचन होते हैं: एकवचन (Singular): एक व्यक्ति/वस्तु द्विवचन (Dual): दो व्यक्ति/वस्तुएँ बहुवचन (Plural): दो से अधिक व्यक्ति/वस्तुएँ 'पठ्' (पढ़ना) धातु का लट् लकार में रूप: पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन प्रथम पुरुष पठति पठतः पठन्ति मध्यम पुरुष पठसि पठथः पठथ उत्तम पुरुष पठामि पठावः पठामः उदाहरण वाक्य: सः पुस्तकं पठति। (वह पुस्तक पढ़ता है।) तौ विद्यालयं गच्छतः। (वे दोनों विद्यालय जाते हैं।) ते क्रीडन्ति। (वे खेलते हैं।) त्वं लेखं लिखसि। (तुम लेख लिखते हो।) युवाम् चित्रं पश्यथः। (तुम दोनों चित्र देखते हो।) यूयम् प्रश्नं पृच्छथ। (तुम सब प्रश्न पूछते हो।) अहम् जलं पिबामि। (मैं पानी पीता हूँ।) आवाम् भोजनं खादावः। (हम दोनों भोजन खाते हैं।) वयम् गीतं गायामः। (हम सब गीत गाते हैं।) ध्यान देने योग्य बातें: धातुओं के अलग-अलग गणों (Groups) के अनुसार लट् लकार के प्रत्ययों में थोड़ा अंतर हो सकता है, लेकिन मूल संरचना यही रहती है। लट् लकार का प्रयोग वर्तमान काल की क्रियाओं को दर्शाने के लिए सबसे आम तरीका है। अन्य धातुओं के उदाहरण: गम् (जाना): गच्छति, गच्छतः, गच्छन्ति... लिख् (लिखना): लिखति, लिखतः, लिखन्ति... खाद् (खाना): खादति, खादतः, खादन्ति... पिब् (पीना): पिबति, पिबतः, पिबन्ति... संक्षेप में: लट् लकार वर्तमान काल की क्रियाओं को दर्शाने के लिए प्रयुक्त होता है। इसकी रूप रचना पुरुष और वचन के अनुसार बदलती है। 'पठ्' धातु के रूप को याद करके आप अन्य धातुओं के रूप भी बना सकते हैं।

2) लोट् लकार – _आज्ञासूचक (Imperative Mood)
लोट् लकार संस्कृत व्याकरण का एक महत्वपूर्ण लकार है जो आज्ञा, अनुमति, प्रार्थना, आशीर्वाद, या उपदेश जैसे भावों को व्यक्त करता है। इसे 'आज्ञासूचक' या 'आज्ञार्थक' भी कहते हैं। परिभाषा और प्रयोग: लोट् लकार का प्रयोग निम्नलिखित स्थितियों में होता है: आज्ञा (Command): किसी को कोई कार्य करने की आज्ञा देने के लिए। जैसे: "जाओ", "पढ़ो", "लिखो"। अनुमति (Permission): किसी को कोई कार्य करने की अनुमति देने के लिए। जैसे: "आप जा सकते हैं", "आप बैठ सकते हैं"। प्रार्थना (Request/Prayer): किसी से विनम्र निवेदन करने के लिए। जैसे: "कृपया मेरी सहायता करें", "कृपया यहाँ आइए"। आशीर्वाद (Blessing): किसी को शुभकामनाएँ या आशीर्वाद देने के लिए। जैसे: "आपका कल्याण हो", "आप दीर्घायु हों"। उपदेश (Advice/Instruction): किसी को सलाह या उपदेश देने के लिए। जैसे: "सत्य बोलो", "समय पर काम करो"। रूप रचना (Conjugation): लोट् लकार में धातुओं के रूप पुरुष (Person) और वचन (Number) के अनुसार बदलते हैं। 'पठ्' (पढ़ना) धातु का लोट् लकार में रूप: पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन प्रथम पुरुष पठतु पठताम् पठन्तु मध्यम पुरुष पठ पठतम् पठत उत्तम पुरुष पठानि पठाव पठाम 'गम्' (जाना) धातु का लोट् लकार में रूप: पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन प्रथम पुरुष गच्छतु गच्छताम् गच्छन्तु मध्यम पुरुष गच्छ गच्छतम् गच्छत उत्तम पुरुष गच्छानि गच्छाव गच्छाम1   1. ध्यान देने योग्य बातें: मध्यम पुरुष एकवचन में कोई प्रत्यय नहीं लगता, धातु का मूल रूप ही रहता है (जैसे 'पठ्', 'गच्छ')। कुछ धातुओं में विशेष परिवर्तन होते हैं। उदाहरण वाक्य: त्वं पुस्तकं पठ। (तुम पुस्तक पढ़ो।) - आज्ञा भवन्तः उपविशन्तु। (आप सब बैठें।) - अनुमति/आज्ञा कृपया मम सहायतां कुरु। (कृपया मेरी सहायता करें।) - प्रार्थना ईश्वरः ते कल्याणं करोतु। (ईश्वर तुम्हारा कल्याण करे।) - आशीर्वाद सत्यं वद। (सत्य बोलो।) - उपदेश लट् और लोट् में अंतर: लट् (वर्तमान काल): वर्तमान में होने वाली क्रिया को दर्शाता है। (जैसे: पठति - वह पढ़ता है।) लोट् (आज्ञासूचक): आज्ञा, अनुमति, प्रार्थना आदि भावों को दर्शाता है। (जैसे: पठतु - वह पढ़े/पढ़ो।) संक्षेप में: लोट् लकार का प्रयोग आज्ञा, अनुमति, प्रार्थना, आशीर्वाद, और उपदेश जैसे भावों को व्यक्त करने के लिए किया जाता है। इसकी रूप रचना पुरुष और वचन के अनुसार बदलती है।

3) लङ् लकार – _अनद्यतन भूत (Past Imperfect tense)
लङ् लकार (अनद्यतन भूत) की विस्तृत व्याख्या लङ् लकार संस्कृत व्याकरण का एक महत्वपूर्ण लकार है जो अनद्यतन भूतकाल (Past Imperfect Tense) को दर्शाता है। "अनद्यतन" का अर्थ है "आज से पहले का"। इसलिए, लङ् लकार उन क्रियाओं को व्यक्त करता है जो आज से पहले किसी समय में घटित हुई थीं। इसे समझने के लिए यहाँ विस्तृत व्याख्या दी गई है: परिभाषा और प्रयोग: लङ् लकार का प्रयोग निम्नलिखित स्थितियों में होता है: अतीत काल की क्रियाएँ: जो क्रियाएँ आज से पहले किसी समय में हुईं, उन्हें दर्शाने के लिए। अपूर्ण क्रियाएँ (Imperfect Actions): जो क्रियाएँ भूतकाल में जारी थीं या पूरी नहीं हुईं, उन्हें दर्शाने के लिए। यह लट् लकार (वर्तमान काल) के समान ही क्रिया की निरंतरता को दर्शाता है, लेकिन भूतकाल में। वर्णन या कथा में: भूतकाल की घटनाओं का वर्णन करते समय लङ् लकार का प्रयोग अधिक होता है। रूप रचना (Conjugation): लङ् लकार में धातुओं के रूप पुरुष (Person) और वचन (Number) के अनुसार बदलते हैं। इसकी रूप रचना इस प्रकार है: धातु के पहले 'अ' (अट्) का आगम: धातु से पहले 'अ' लगाया जाता है। जैसे - पठ् + अ = अपठ् प्रत्ययों का योग: फिर पुरुष और वचन के अनुसार प्रत्यय जोड़े जाते हैं। 'पठ्' (पढ़ना) धातु का लङ् लकार में रूप: पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन प्रथम पुरुष अपठत् अपठताम् अपठन् मध्यम पुरुष अपठः अपठतम् अपठत उत्तम पुरुष अपठम् अपठाव अपठाम 'गम्' (जाना) धातु का लङ् लकार में रूप: पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन प्रथम पुरुष अगच्छत् अगच्छताम् अगच्छन् मध्यम पुरुष अगच्छः अगच्छतम् अगच्छत उत्तम पुरुष अगच्छम् अगच्छाव अगच्छाम उदाहरण वाक्य: रामः पुस्तकम् अपठत्। (राम ने पुस्तक पढ़ी थी।) बालकौ विद्यालयम् अगच्छताम्। (दो बालक विद्यालय गए थे।) ते क्रीडाङ्गणे अक्रीडन्। (वे खेल के मैदान में खेल रहे थे।) त्वं प्रश्नम् अपृच्छः। (तुमने प्रश्न पूछा था।) अहम् गीतम् अगाम्। (मैंने गीत गाया था।) लट् और लङ् में अंतर: लट् (वर्तमान काल): वर्तमान समय में होने वाली क्रिया को दर्शाता है। (जैसे: पठति - पढ़ता है) लङ् (अनद्यतन भूतकाल): आज से पहले किसी समय में हुई क्रिया को दर्शाता है। (जैसे: अपठत् - पढ़ा था) लङ् लकार का प्रयोग कब करें: जब आप भूतकाल की किसी ऐसी क्रिया का वर्णन कर रहे हों जो आज से पहले हुई थी और आप उस क्रिया की निरंतरता या अपूर्णता पर बल देना चाहते हों, तब लङ् लकार का प्रयोग करें। उदाहरण: सः प्रतिदिनं विद्यालयम् अगच्छत्। (वह प्रतिदिन विद्यालय जाता था।) - यहाँ क्रिया की निरंतरता दिखाई दे रही है। लङ् लकार का प्रयोग कहानियों, वर्णनों और ऐतिहासिक घटनाओं के विवरण में अधिक होता है।

4) लृङ् लकार – _क्रियातिपत्ति (Conditional)
लृङ् लकार संस्कृत व्याकरण का एक लकार है जो हेतुहेतुमद् भूतकाल (Conditional Past/Conditional Mood) को दर्शाता है। इसे "शर्त वाला भूतकाल" भी कहते हैं, क्योंकि यह भूतकाल में किसी शर्त पर आधारित क्रिया को व्यक्त करता है। इसका अर्थ है कि यदि भूतकाल में कोई एक क्रिया हुई होती, तो दूसरी क्रिया भी हुई होती, लेकिन वास्तव में दोनों में से कोई भी क्रिया नहीं हुई। परिभाषा और प्रयोग: लृङ् लकार का प्रयोग निम्नलिखित स्थितियों में होता है: शर्त वाले भूतकाल की क्रियाएँ: भूतकाल में किसी शर्त पर आधारित क्रिया को दर्शाने के लिए। "यदि ऐसा होता, तो वैसा होता" इस प्रकार के वाक्यों में इसका प्रयोग होता है। अवास्तविक स्थितियाँ: भूतकाल की उन स्थितियों को व्यक्त करने के लिए जो वास्तव में नहीं हुईं। पश्चाताप या अफ़सोस: किसी ऐसी स्थिति को व्यक्त करने के लिए जहाँ किसी कार्य के न होने पर अफ़सोस जताया जा रहा हो। रूप रचना (Conjugation): लृङ् लकार में धातुओं के रूप पुरुष (Person) और वचन (Number) के अनुसार बदलते हैं। इसकी रूप रचना इस प्रकार है: 'स्य' प्रत्यय का आगम: धातु के साथ 'स्य' प्रत्यय जोड़ा जाता है। भूतकाल के प्रत्यय: फिर भूतकाल के प्रत्यय जोड़े जाते हैं, जो लङ् लकार के समान होते हैं। 'पठ्' (पढ़ना) धातु का लृङ् लकार में रूप: पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन प्रथम पुरुष अपठिष्यत् अपठिष्यताम् अपठिष्यन् मध्यम पुरुष अपठिष्यः अपठिष्यतम् अपठिष्यत उत्तम पुरुष अपठिष्यम् अपठिष्याव अपठिष्याम 'गम्' (जाना) धातु का लृङ् लकार में रूप: पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन प्रथम पुरुष अगमिष्यत् अगमिष्यताम् अगमिष्यन् मध्यम पुरुष अगमिष्यः अगमिष्यतम् अगमिष्यत उत्तम पुरुष अगमिष्यम् अगमिष्याव अगमिष्याम उदाहरण वाक्य: यदि सः अपठिष्यत्, तर्हि उत्तीर्णः अभविष्यत्। (यदि वह पढ़ता, तो उत्तीर्ण होता।) - लेकिन वास्तव में वह नहीं पढ़ा, इसलिए उत्तीर्ण भी नहीं हुआ। यदि त्वं अगमिष्यः, तर्हि अहं अपि आगमिष्यम्। (यदि तुम जाते, तो मैं भी जाता।) - लेकिन वास्तव में दोनों नहीं गए। यदि वर्षा अभविष्यत्, तर्हि शस्यानि अरोहिष्यन्। (यदि वर्षा होती, तो फसलें उगतीं।) - लेकिन वर्षा नहीं हुई, इसलिए फसलें भी नहीं उगीं। लङ् और लृङ् में अंतर: लङ् (अनद्यतन भूतकाल/Imperfect): भूतकाल में हुई क्रिया को दर्शाता है। (जैसे: अपठत् - उसने पढ़ा।) लृङ् (हेतुहेतुमद् भूतकाल/Conditional): भूतकाल में किसी शर्त पर आधारित क्रिया को दर्शाता है जो वास्तव में नहीं हुई। (जैसे: अपठिष्यत् - यदि वह पढ़ता।) संक्षेप में: लृङ् लकार भूतकाल की अवास्तविक या काल्पनिक स्थितियों को व्यक्त करता है, जहाँ एक क्रिया किसी अन्य क्रिया पर निर्भर होती है, लेकिन दोनों क्रियाएँ वास्तव में घटित नहीं होती हैं। यह पश्चाताप, अफ़सोस, या काल्पनिक परिदृश्यों को व्यक्त करने के लिए उपयोगी है।

5) लुट् लकार – _अनद्यतन भविष्य (Future Imperfect tense)
लुट् लकार संस्कृत व्याकरण का एक लकार है जो भविष्यकाल की क्रियाओं को दर्शाता है, लेकिन विशेष रूप से उन क्रियाओं को जो भविष्य में कभी होंगी, या जिनका होना निश्चित नहीं है। इसे "अनिश्चित भविष्यकाल" या "सामान्य भविष्यकाल" भी कहा जाता है। इसे अंग्रेजी के simple future tense से कुछ हद तक जोड़ा जा सकता है, लेकिन इसमें अनिश्चितता का भाव अधिक प्रबल होता है। परिभाषा और प्रयोग: लुट् लकार का प्रयोग निम्नलिखित स्थितियों में होता है: सामान्य भविष्य की क्रियाएँ: भविष्य में होने वाली सामान्य क्रियाओं को दर्शाने के लिए। जैसे: "वह जाएगा", "वे लिखेंगे"। अनिश्चितता का भाव: जब क्रिया का होना निश्चित न हो, या वक्ता को क्रिया के होने में संदेह हो। भविष्य की संभावनाएँ: भविष्य में होने वाली संभावित घटनाओं को व्यक्त करने के लिए। रूप रचना (Conjugation): लुट् लकार में धातुओं के रूप पुरुष (Person) और वचन (Number) के अनुसार बदलते हैं। इसकी रूप रचना इस प्रकार है: 'तृ' प्रत्यय का योग: धातु के साथ 'तृ' प्रत्यय जोड़ा जाता है। पुरुष और वचन के अनुसार प्रत्यय: फिर पुरुष और वचन के अनुसार विशिष्ट प्रत्यय जोड़े जाते हैं। 'पठ्' (पढ़ना) धातु का लुट् लकार में रूप: पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन प्रथम पुरुष पठिता पठितारौ पठितारः मध्यम पुरुष पठितासि पठितस्थः पठितस्थ उत्तम पुरुष पठितास्मि पठितस्वः पठितस्मः 'गम्' (जाना) धातु का लुट् लकार में रूप: पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन प्रथम पुरुष गन्ता गन्तारौ गन्तारः मध्यम पुरुष गन्तासि गन्तस्थः गन्तस्थ उत्तम पुरुष गन्तास्मि गन्तस्वः गन्तस्मः ध्यान देने योग्य बातें: कुछ धातुओं में 'तृ' के स्थान पर 'ता' भी लगता है। यह लकार आधुनिक संस्कृत में कम प्रयुक्त होता है, शास्त्रीय संस्कृत में इसका प्रयोग अधिक मिलता है। उदाहरण वाक्य: सः पुस्तकं पठिता। (वह पुस्तक पढ़ेगा।) ते विद्यालयं गन्तारः। (वे विद्यालय जाएँगे।) त्वं लेखं लिखितासि। (तुम लेख लिखोगे।) लृट् और लुट् में अंतर: लृट् (निश्चित भविष्यकाल): भविष्य की निश्चित क्रिया को दर्शाता है। (जैसे: पठिष्यति - वह अवश्य पढ़ेगा।) लुट् (अनिश्चित भविष्यकाल): भविष्य की अनिश्चित या सामान्य क्रिया को दर्शाता है। (जैसे: पठिता - वह पढ़ेगा (संभावना है)।) संक्षेप में: लुट् लकार भविष्यकाल की क्रियाओं को दर्शाता है, लेकिन इसमें क्रिया के होने की अनिश्चितता या संभावना का भाव अधिक होता है। आधुनिक संस्कृत में इसका प्रयोग कम होता है।

5) लिङ् लकार: अ) विधिलिङ् – _विधिसूचक (Potential Mood)_ {आ} आशीर्लिङ् -आशीर्वाद-सूचक (Benedictive)
लिङ् लकार संस्कृत व्याकरण का एक महत्वपूर्ण लकार है जो विभिन्न प्रकार के भावों को व्यक्त करता है, जैसे कि संभावना, इच्छा, कर्तव्य, अनुमति, और आशीर्वाद। इसके दो मुख्य भेद हैं: अ) विधिलिङ् (Potential/Optative Mood): विधिलिङ् लकार का प्रयोग निम्नलिखित अर्थों में होता है: विधि (Prescription/Injunction): कर्तव्य, उचितता, या आवश्यकता का बोध कराने के लिए। "चाहिए" या "करना चाहिए" जैसे अर्थों में इसका प्रयोग होता है। उदाहरण के लिए, "हमें सत्य बोलना चाहिए" को संस्कृत में "वयं सत्यं वदेम" कहेंगे। संभावना (Possibility): किसी कार्य के होने की संभावना व्यक्त करने के लिए। "शायद ऐसा हो" या "ऐसा हो सकता है" जैसे अर्थों में इसका प्रयोग होता है। उदाहरण के लिए, "शायद वह कल आए" को "सः श्वः आगच्छेत्" कह सकते हैं। इच्छा (Desire/Wish): किसी इच्छा या कामना को व्यक्त करने के लिए। "काश ऐसा होता" या "ऐसा हो" जैसे अर्थों में इसका प्रयोग होता है। उदाहरण के लिए, "मैं चाहता हूँ कि तुम सफल हो" को "अहम् इच्छामि यत् त्वं सफलः भवेः" कह सकते हैं। आमंत्रण (Invitation): किसी को कुछ करने के लिए आमंत्रित करने के लिए। उदाहरण के लिए, "आप आइए" को "भवन्तः आगच्छेयुः" कह सकते हैं। अनुमति (Permission): किसी कार्य की अनुमति मांगने या देने के लिए। उदाहरण के लिए, "क्या मैं जा सकता हूँ?" को "किम् अहम् गच्छेयम्?" कह सकते हैं। रूप रचना (Conjugation): विधिलिङ् में धातुओं के रूप पुरुष (Person) और वचन (Number) के अनुसार बदलते हैं। 'पठ्' (पढ़ना) धातु का विधिलिङ् में रूप: पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन प्रथम पुरुष पठेत् पठेताम् पठेयुः मध्यम पुरुष पठेः पठेतम् पठेत उत्तम पुरुष पठेयम् पठेव पठेम उदाहरण वाक्य: छात्रः पाठं पठेत्। (छात्र को पाठ पढ़ना चाहिए।) त्वं सत्यं वदेः। (तुम्हें सत्य बोलना चाहिए।) सः कदाचित् आगच्छेत्। (शायद वह कभी आए।) आ) आशीर्लिङ् (Benedictive Mood): आशीर्लिङ् लकार का प्रयोग केवल आशीर्वाद या शुभकामना देने के लिए होता है। इसका प्रयोग वर्तमान समय में बहुत कम होता है, लेकिन वैदिक संस्कृत और कुछ शास्त्रीय ग्रंथों में यह पाया जाता है। प्रयोग: आशीर्वाद (Blessing): किसी को शुभकामनाएँ देने के लिए। "आपका कल्याण हो" या "आप दीर्घायु हों" जैसे अर्थों में इसका प्रयोग होता है। रूप रचना (Conjugation): आशीर्लिङ् में भी धातुओं के रूप पुरुष और वचन के अनुसार बदलते हैं। इसकी रूप रचना विधिलिङ् से थोड़ी भिन्न है। 'भू' (होना) धातु का आशीर्लिङ् में रूप: पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन प्रथम पुरुष भूयात् भूयास्ताम् भूयासुः मध्यम पुरुष भूयाः भूयास्तम् भूयास्त उत्तम पुरुष भूयासम् भूयास्व भूयास्म1 उदाहरण वाक्य: दीर्घायुः भूयात्। (आप दीर्घायु हों।) सर्वं कुशलं भूयात्। (सब कुशल हो।) विधिलिङ् और आशीर्लिङ् में अंतर: विधिलिङ्: विधि, संभावना, इच्छा, आमंत्रण, अनुमति आदि विभिन्न अर्थों में प्रयुक्त होता है। आशीर्लिङ्: केवल आशीर्वाद देने के लिए प्रयुक्त होता है। संक्षेप में, विधिलिङ् विभिन्न प्रकार के भावों को व्यक्त करने वाला एक बहुमुखी लकार है, जबकि आशीर्लिङ् केवल आशीर्वाद देने के लिए ही प्रयुक्त होता है।

6)लृट् लकार – _सामान्य भविष्य (Simple Future tense)
लृट् लकार संस्कृत व्याकरण का एक महत्वपूर्ण लकार है जो भविष्य में होने वाली क्रियाओं को निश्चित रूप से व्यक्त करता है। इसे "सामान्य भविष्यत् काल" या "निश्चित भविष्यत् काल" भी कहते हैं। यह अंग्रेजी के Simple Future Tense के समान है। परिभाषा और प्रयोग: लृट् लकार का प्रयोग निम्नलिखित स्थितियों में होता है: निश्चित भविष्य की क्रियाएँ: भविष्य में होने वाली उन क्रियाओं को दर्शाने के लिए जिनके होने की पूरी संभावना या निश्चय हो। जैसे: "वह जाएगा", "वे लिखेंगे", "मैं खाऊँगा"। भविष्य की योजनाएँ या इरादे: भविष्य में किए जाने वाले कार्यों की योजनाओं या इरादों को व्यक्त करने के लिए। भविष्य की भविष्यवाणियाँ या भविष्य कथन: भविष्य में होने वाली घटनाओं की भविष्यवाणियाँ या भविष्य कथन करने के लिए। रूप रचना (Conjugation): लृट् लकार में धातुओं के रूप पुरुष (Person) और वचन (Number) के अनुसार बदलते हैं। इसकी रूप रचना इस प्रकार है: 'स्य' प्रत्यय का योग: धातु के साथ 'स्य' प्रत्यय जोड़ा जाता है। पुरुष और वचन के अनुसार प्रत्यय: फिर पुरुष और वचन के अनुसार विशिष्ट प्रत्यय जोड़े जाते हैं। 'पठ्' (पढ़ना) धातु का लृट् लकार में रूप: पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन प्रथम पुरुष पठिष्यति पठिष्यतः पठिष्यन्ति मध्यम पुरुष पठिष्यसि पठिष्यथः पठिष्यथ उत्तम पुरुष पठिष्यामि पठिष्यावः पठिष्यामः 'गम्' (जाना) धातु का लृट् लकार में रूप: पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन प्रथम पुरुष गमिष्यति गमिष्यतः गमिष्यन्ति मध्यम पुरुष गमिष्यसि गमिष्यथः गमिष्यथ उत्तम पुरुष गमिष्यामि गमिष्यावः गमिष्यामः ध्यान देने योग्य बातें: कुछ धातुओं में 'स्य' के स्थान पर 'इष्य' का आगम होता है। उदाहरण वाक्य: सः पुस्तकं पठिष्यति। (वह पुस्तक पढ़ेगा।) ते विद्यालयं गमिष्यन्ति। (वे विद्यालय जाएँगे।) त्वं लेखं लिखिष्यसि। (तुम लेख लिखोगे।) अहं भोजनं खादिष्यामि। (मैं भोजन खाऊँगा।) वयं चित्रं द्रक्ष्यामः। (हम चित्र देखेंगे।) लट् और लृट् में अंतर: लट् (वर्तमान काल): वर्तमान में होने वाली क्रिया को दर्शाता है। (जैसे: पठति - वह पढ़ता है।) लृट् (सामान्य भविष्यत् काल): भविष्य में निश्चित रूप से होने वाली क्रिया को दर्शाता है। (जैसे: पठिष्यति - वह पढ़ेगा।) लुट् और लृट् में अंतर: लुट् (अनिश्चित भविष्यकाल): भविष्य में होने वाली क्रिया को दर्शाता है, लेकिन अनिश्चितता के भाव के साथ। (जैसे: पठिता - वह पढ़ेगा (शायद)।) लृट् (सामान्य भविष्यत् काल): भविष्य में निश्चित रूप से होने वाली क्रिया को दर्शाता है। (जैसे: पठिष्यति - वह अवश्य पढ़ेगा।) संक्षेप में: लृट् लकार भविष्य में होने वाली क्रियाओं को निश्चित रूप से व्यक्त करता है। यह भविष्य की योजनाओं, इरादों और भविष्यवाणियों को दर्शाने के लिए उपयुक्त है।

2) लुङ् लकार – _सामान्य (=आसन्न) भूत
लुङ् लकार (सामान्य भूत/आसन्न भूत) की विस्तृत व्याख्या लुङ् लकार संस्कृत व्याकरण का एक लकार है जो सामान्य भूतकाल या आसन्न भूतकाल (past tense) को दर्शाता है। इसे समझना थोड़ा जटिल हो सकता है, लेकिन यहाँ इसे सरल भाषा में समझाने का प्रयास किया गया है: परिभाषा और प्रयोग: लुङ् लकार का प्रयोग उस क्रिया को दर्शाने के लिए होता है जो भूतकाल में घटित हुई हो, लेकिन विशेष रूप से किसी निश्चित समय या अवधि पर जोर नहीं दिया जाता। इसे "सामान्य भूत" इसलिए कहते हैं क्योंकि यह भूतकाल की सामान्य घटनाओं को दर्शाता है। कुछ वैयाकरण इसे "आसन्न भूत" भी मानते हैं, जिसका तात्पर्य है कि घटना हाल ही में या तुरंत पहले ही घटी है। लुङ् लकार के प्रयोग के कुछ मुख्य पहलू: सामान्य भूतकाल की घटनाएँ: जो क्रियाएँ भूतकाल में हुईं, उन्हें दर्शाने के लिए। अनिश्चित समय: क्रिया के घटित होने का समय स्पष्ट रूप से नहीं बताया जाता। अपूर्णता का भाव (कभी-कभी): कुछ संदर्भों में, लुङ् लकार क्रिया की अपूर्णता या पूर्णता के अभाव को भी सूचित कर सकता है। रूप रचना (Conjugation): लुङ् लकार में धातुओं के रूप पुरुष (Person) और वचन (Number) के अनुसार बदलते हैं, जैसे अन्य लकारों में होता है। इसकी रूप रचना थोड़ी जटिल है, क्योंकि इसमें धातु के आगे 'अ' (अट्) का आगम होता है और कुछ धातुओं में विशेष परिवर्तन भी होते हैं। 'भू' (होना) धातु का लुङ् लकार में रूप: पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन प्रथम पुरुष अभूत् अभूताम् अभूवन् मध्यम पुरुष अभूः अभूतम् अभूत उत्तम पुरुष अभूवम् अभूस्व अभूस्म 'पठ्' (पढ़ना) धातु का लुङ् लकार में रूप: पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन प्रथम पुरुष अपाठीत् अपाठाताम् अपाठिषुः मध्यम पुरुष अपाठीः अपाठतम् अपाठत उत्तम पुरुष अपाठिषम् अपाठाव अपाठाम ध्यान दें: 'पठ्' जैसी धातुओं में 'इ' का आगम होता है। उदाहरण वाक्य: सः ग्रामम् अगमत्। (वह गाँव गया।) तौ फलं खादितवन्तौ। (उन दोनों ने फल खाया।) ते चित्रम् अपश्यन्। (उन्होंने चित्र देखा।) त्वं प्रश्नम् अपृच्छः। (तुमने प्रश्न पूछा।) अहम् पुस्तकम् अपठिषम्। (मैंने पुस्तक पढ़ी।) लट्, लङ् और लुङ् में अंतर: लट् (वर्तमान काल): वर्तमान में होने वाली क्रिया। (जैसे: पठति - पढ़ता है) लङ् (अनद्यतन भूतकाल): बीते हुए कल की या आज से पहले की घटनाओं के लिए। (जैसे: अपठत् - पढ़ा था) लुङ् (सामान्य/आसन्न भूत): भूतकाल की सामान्य घटना, समय का विशेष उल्लेख नहीं। (जैसे: अपाठीत् - पढ़ा) लुङ् लकार का प्रयोग शास्त्रीय संस्कृत साहित्य में अधिक होता है, आधुनिक बोलचाल की संस्कृत में इसका प्रयोग कम देखने को मिलता है।

4) लिट् लकार – _परोक्ष भूत (Past Perfect tense)
लिट् लकार (परोक्ष भूत) की विस्तृत व्याख्या लिट् लकार संस्कृत व्याकरण का एक महत्वपूर्ण लकार है जो परोक्ष भूतकाल (Past Perfect Tense) को दर्शाता है। "परोक्ष" का अर्थ है 'प्रत्यक्ष न होना', 'सामने न घटित होना'। इसलिए, लिट् लकार उन क्रियाओं को दर्शाता है जो भूतकाल में घटित हुईं, लेकिन वे वक्ता के प्रत्यक्ष अनुभव में नहीं थीं, यानी वक्ता ने उन घटनाओं को स्वयं नहीं देखा होता, बल्कि सुना या अनुमान लगाया होता है। परिभाषा और प्रयोग: लिट् लकार का प्रयोग निम्नलिखित परिस्थितियों में होता है: अप्रत्यक्ष भूतकाल: उन क्रियाओं को दर्शाने के लिए जो वक्ता ने स्वयं अनुभव नहीं की हैं, बल्कि भूतकाल में घटित हुई हैं। ऐतिहासिक घटनाएँ: इतिहास में घटित हुई घटनाओं का वर्णन करने के लिए। पौराणिक कथाएँ: देवताओं, ऋषियों-मुनियों या पौराणिक पात्रों की भूतकाल की क्रियाओं का वर्णन करने के लिए। अनुमान या सुनी हुई जानकारी: दूसरों से सुनी हुई या अनुमान से तय की गई भूतकाल की घटनाओं के लिए। रूप रचना (Conjugation): लिट् लकार में धातुओं के रूप पुरुष (Person) और वचन (Number) के अनुसार बदलते हैं। इसकी रूप रचना अन्य लकारों से थोड़ी अलग है। द्वित्व (Reduplication): अधिकांश धातुओं के पहले अक्षर को दो बार लिखा जाता है, जिसमें थोड़ा बदलाव होता है। उदाहरण के लिए 'पठ्' (पढ़ना) का 'पपाठ' होता है। प्रत्ययों का योग: पुरुष और वचन के अनुसार प्रत्यय जोड़े जाते हैं। 'पठ्' (पढ़ना) धातु का लिट् लकार में रूप: पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन प्रथम पुरुष पपाठ पपठतुः पपठुः मध्यम पुरुष पपठिथ पपठथुः पपठ उत्तम पुरुष पपाठ पपठिव पपठिम 'गम्' (जाना) धातु का लिट् लकार में रूप: पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन प्रथम पुरुष जगाम जग्मतुः जग्मुः मध्यम पुरुष गमिथ गमधुः गम उत्तम पुरुष जगाम गमिव गमिम उदाहरण वाक्य: रामः रावणं जघान। (राम ने रावण को मारा था।) - यह घटना वक्ता ने स्वयं नहीं देखी, यह इतिहास से ज्ञात है। कृष्णः कंसं जघान। (कृष्ण ने कंस को मारा था।) - पौराणिक कथा। सः पुस्तकं पपाठ। (उसने पुस्तक पढ़ी थी।) - शायद वक्ता ने यह दूसरों से सुना होगा। लट्, लङ् और लिट् में अंतर: लट् (वर्तमान काल): वर्तमान में हो रही क्रिया। (जैसे: पठति - पढ़ता है।) लङ् (अनद्यतन भूतकाल): आज से पहले घटित हुई, प्रत्यक्ष अनुभव की हुई क्रिया। (जैसे: अपठत् - पढ़ा था।) लिट् (परोक्ष भूतकाल): अप्रत्यक्ष भूतकाल, सुनी हुई या अनुमानित क्रिया। (जैसे: पपाठ - पढ़ा था।) निष्कर्ष: लिट् लकार संस्कृत भाषा का एक विशेष लकार है जो अप्रत्यक्ष भूतकाल की घटनाओं का वर्णन करने के लिए उपयोग में आता है। इसका उपयोग ऐतिहासिक, पौराणिक और सुनी हुई घटनाओं का वर्णन करने के लिए होता है।

भक्तिपूर्ण गायन
त्वदीयं वस्तु गोविन्द । तुभ्यमेव समर्पये​ ।।
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