सन्ध्यावन्दन सीखें
संध्या यानि जहाँ दिन और रात की संधि होती हो यानि सूर्य डूबने के दस मिनट पहले और बाद का समय ईश्वर स्मरण के लिए और उपयुक्त माना जाता है।
संधि काल में ही संध्या वंदन की जाती है। वैसे संधि पाँच वक्त (समय) की होती है, लेकिन प्रात: काल और संध्या काल- उक्त दो समय की संधि प्रमुख है। अर्थात सूर्य उदय और अस्त के समय। इस समय मंदिर या एकांत में शौच, आचमन, प्राणायामादि कर गायत्री छंद से निराकार ईश्वर की प्रार्थना की जाती है।
हमारा विश्वास है यदि आप सनातनी हैं तो संध्या के समय ध्यान अवश्य करेंगे।
ऐसा करने से मानसिक रोग नहीं बढ़ते, समस्याओं के हल मिलते हैं।
एक वाक्य यह भी है कि संध्या काल में शिव पार्वती जी पृथ्वी भ्रमण पर निकलते हैं जिसको जैसे कार्य करते देखते हैं वैसा ही आशीर्वाद दे जाते हैं। संध्या वन्दन हम सभी को करना चाहिये ।
त्रिकाल संध्या, जिसे “त्रिसंध्या” भी कहा जाता है, हिन्दू धर्म में सूर्योदय, सूर्यास्त, और सूर्यमुख से प्रारम्भ होने वाले तीन संध्याकाल में की जाने वाली पूजा और ध्यान का एक विशेष रूप है। इसे ज्यादातर ब्राह्मण और द्विज वर्ण के हिन्दू व्यक्तियों के द्वारा की जाती है, लेकिन आजकल कुछ लोग इसे भी करते हैं।
त्रिकाल संध्या की पद्धति निम्नलिखित होती है:
1. प्रातः संध्या (सूर्योदय से पहले की संध्या): इस संध्या को सुबह के समय सूर्य के उदय के पहले किया जाता है। प्रातः संध्या का मुख्य उद्देश्य भगवान सूर्य की पूजा करना होता है।
2. माध्यानिक संध्या (दिन की मध्या समय की संध्या): इस संध्या को दिन के बीच की समय में किया जाता है, जब सूर्य ऊँचाई पर होता है। माध्यानिक संध्या में भगवान विष्णु की पूजा और ध्यान किया जाता है।
3. सायं संध्या (सूर्यास्त के पहले की संध्या): इस संध्या को सूर्यास्त के पहले किया जाता है। सायं संध्या के दौरान भगवान शिव की पूजा और ध्यान किया जाता है।
त्रिकाल संध्या करने का मुख्य उद्देश्य ईश्वर की पूजा और आत्मा के शुद्धि का प्रयास करना होता है। प्रत्येक संध्या के दौरान मंत्रों का जाप, ध्यान, और आराधना की जाती है, जिससे आत्मा का उन्नति और धार्मिकता का सामर्थ्य विकसित होता है।
कैसे करने के लिए विस्तार से मार्गदर्शन चाहिए, आपको अपने धार्मिक गुरु या पुजारी से परामर्श लेना बेहतर होगा, क्योंकि यह सभी अद्वितीय ज्ञान और पद्धतियों पर निर्भर करता है।
हमारी संस्था द्वारा सभी को नि: शुल्क यह उपासना पद्धति सिखाई जाती है
Sandhya means the time when day and night meet i.e. ten minutes before and after sunset is considered more suitable for remembering God.
Sandhya vandan is done during the Sandhya period. Although there are five times of Sandhya, but the Sandhya period of the above mentioned two times is important. That is, at the time of sunrise and sunset. At this time, after defecation, sipping water, pranayama etc. in the temple or in solitude, prayers are offered to the formless God with Gayatri verse.
We believe that if you are a Sanatani, then you will definitely meditate during Sandhya period.
By doing this, mental diseases do not increase, solutions to problems are found.
There is also a saying that during Sandhya period, Shiv Parvati ji goes out to tour the earth and blesses the person doing whatever work he sees. We all should do Sandhya vandan.
Trikal Sandhya, which is also called “Trisandhya”, is a special form of worship and meditation in Hindu religion done during the three Sandhya periods starting from sunrise, sunset, and Suryamukh. It is mostly performed by Brahmin and Dwij Hindus, but nowadays some people also perform it.
The procedure of Trikal Sandhya is as follows:
1. Pratham Sandhya (Sandhya before sunrise): This Sandhya is performed in the morning before the sunrise. The main purpose of Pratham Sandhya is to worship Lord Sun.
2. Madhyanik Sandhya (Midday Sandhya): This Sandhya is performed in the middle of the day, when the sun is at its highest. In Madhyanik Sandhya, Lord Vishnu is worshipped and meditated upon.
3. Shayan Sandhya (Sandhya before sunset): This Sandhya is performed before sunset. During the evening Sandhya, Lord Shiva is worshipped and meditated upon.
The main purpose of performing Trikal Sandhya is to worship God and try to purify the soul. During each Sandhya, mantras are chanted, meditated upon, and worshipped, which leads to the upliftment of the soul and develops the power of righteousness.
If you need detailed guidance on how to do it, it is better to consult your religious Guru or priest, as it all depends on unique knowledge and methods.
This worship method is taught free of cost to everyone by our organization